Top Headlines & Analysis: India and Global News – June 27, 2025

"तारे ज़मीन पर" 2007 में रिलीज़ हुई एक हिंदी फ़िल्म है, जिसे आमिर खान ने निर्देशित किया और अभिनय भी किया। यह फ़िल्म एक छोटे बच्चे ईशान अवस्थी की कहानी है, जो पढ़ाई में कमजोर है लेकिन कला में बेहद प्रतिभाशाली है। इस फ़िल्म ने न केवल दर्शकों का दिल जीता, बल्कि शिक्षा प्रणाली पर गहरा प्रश्नचिन्ह भी खड़ा किया।
ईशान अवस्थी एक 8 साल का बच्चा है, जो सामान्य बच्चों से अलग है। वह पढ़ाई में कमजोर है, खासकर भाषा और गणित में। उसे अक्षरों को पहचानने और सही तरीके से पढ़ने में परेशानी होती है। उसके माता-पिता और शिक्षक उसे आलसी और अनुशासनहीन मानते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि ईशान डिस्लेक्सिया नामक एक मानसिक स्थिति से जूझ रहा होता है।
जब उसके माता-पिता उसकी समस्याओं को समझ नहीं पाते, तो वे उसे एक बोर्डिंग स्कूल में भेज देते हैं। वहाँ भी उसकी स्थिति नहीं सुधरती, बल्कि और खराब हो जाती है। उसी समय स्कूल में एक नया कला शिक्षक राम शंकर निकुंभ आता है, जिसे ईशान की प्रतिभा और समस्या दोनों का एहसास होता है।
राम शंकर निकुंभ एक ऐसा शिक्षक है जो बच्चों को समझता है और उनकी भावनाओं का सम्मान करता है। जब वह ईशान की हालत को देखता है, तो वह जान जाता है कि ईशान को मदद की ज़रूरत है। वह उसके माता-पिता से मिलता है और समझाता है कि ईशान को विशेष शिक्षा की आवश्यकता है, न कि सजा की।
निकुंभ ईशान में विश्वास जगाते हैं और उसे यह एहसास दिलाते हैं कि वह अद्वितीय है। वह उसे धीरे-धीरे पढ़ाई में रुचि लेना सिखाते हैं और उसकी चित्रकला की प्रतिभा को प्रोत्साहित करते हैं। ईशान फिर से आत्मविश्वासी बन जाता है और उसका प्रदर्शन स्कूल में बेहतर हो जाता है।
"तारे ज़मीन पर" फ़िल्म शिक्षा प्रणाली पर गहरा प्रश्न उठाती है। यह दिखाती है कि किस प्रकार हम हर बच्चे को एक जैसे मानते हैं, जबकि हर बच्चा अलग होता है। कुछ बच्चे गणित में अच्छे होते हैं, कुछ भाषा में, और कुछ कला या खेल में। लेकिन जब हम सभी को एक ही मापदंड से आंकते हैं, तो हम उनकी रचनात्मकता को कुचल देते हैं।
फ़िल्म यह भी दर्शाती है कि शिक्षक और माता-पिता को केवल अंक या परीक्षा परिणामों से बच्चों का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। उन्हें उनके अंदर छिपी प्रतिभा को पहचानना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ने का अवसर देना चाहिए।
"तारे ज़मीन पर" ने भारत में पहली बार डिस्लेक्सिया जैसी समस्या को मुख्यधारा में लाया। यह समस्या आमतौर पर पढ़ने और लिखने में होती है, लेकिन ज़्यादातर लोग इसे नहीं समझते और बच्चों को आलसी या नालायक मान लेते हैं। इस फ़िल्म ने इस मानसिक स्थिति की वास्तविकता को उजागर किया और समाज को संवेदनशील बनाया।
फ़िल्म में बताया गया है कि डिस्लेक्सिया कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक विशेष स्थिति है, जिसे समय और प्यार के साथ संभाला जा सकता है। यह जानकारी समाज में जागरूकता फैलाने में बेहद मददगार रही।
फ़िल्म की पटकथा, संवाद, संगीत और अभिनय सभी उच्च स्तर के हैं। प्रतीकात्मक चित्रण, जैसे ईशान का उड़ते घोड़े का सपना या उसकी कल्पना की दुनिया, फ़िल्म को गहराई देती है। शंकर-एहसान-लॉय द्वारा रचित संगीत फ़िल्म में भावनाओं को और सशक्त बनाता है। "माँ" और "जिंदगी" जैसे गाने हर दर्शक को भावुक कर देते हैं।
"तारे ज़मीन पर" ने भारत सहित दुनिया भर में दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इस फ़िल्म को शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों ने समान रूप से सराहा। कई स्कूलों में इस फ़िल्म को दिखाकर बच्चों की समस्याओं पर खुलकर चर्चा शुरू हुई। यह फ़िल्म एक आंदोलन की तरह थी, जिसने बच्चों के अधिकारों, शिक्षा प्रणाली और अभिभावकों की सोच में बदलाव लाया।
यह फ़िल्म हमें सिखाती है कि हर बच्चा एक सितारा है, उसे बस सही समझ और समर्थन की ज़रूरत है। हमें अपने बच्चों को केवल डॉक्टर, इंजीनियर या वकील बनाने की चाह में उनकी रचनात्मकता को नहीं कुचलना चाहिए। हो सकता है कि उनका सपना किसी और दिशा में हो — चित्रकला, संगीत, लेखन या नृत्य में।
सबसे जरूरी बात यह है कि हमें अपने बच्चों को सुनना और समझना चाहिए। उनके डर, उनकी परेशानी और उनकी रुचियों को जानना चाहिए। तभी हम उन्हें बेहतर इंसान बना पाएंगे।
"तारे ज़मीन पर" सिर्फ एक फ़िल्म नहीं है, यह एक संवेदना है। यह हर उस बच्चे की आवाज़ है जो समझा जाना चाहता है। यह उन सभी माता-पिता और शिक्षकों के लिए एक संदेश है जो केवल प्रतिस्पर्धा और अंकों को महत्व देते हैं। अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे सफल हों, तो हमें उन्हें उनकी शर्तों पर समझना और समर्थन देना होगा।
हर बच्चा एक अनमोल सितारा है, जो ज़मीन पर चमकने के लिए आया है। बस हमें उसकी चमक को पहचानना है।
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